शीर्षक शिव मय जीवन
हे विधाता जगत स्वरुप हर जन के पालन हार ।
पूर्ण काम अभिराम सकल जग के तुम तारणहार ।।
सृजन पालन और मारण का है तुमपर अधिभार ।
शिव हो तुम तुम से चलता है सकल संसार ।।
शिव मय होकर जो भी निभाता कर्तव्य भार ।
शिव साक्षी बनकर कर देते हैं उसका उद्धार ।।
पार्वती ने शिव मय होकर जब जब शिव को अपनाया ।
तब तब शिव ने हिमाचल को अपना प्रेम दर्शाया ।।
प्रकृति भी शिव मय होकर जब रौद्र रूप दिखलाती है ।
पूर्णमासी भी अंधकार मय होकर रसातल में चली जाती है ।।
हा हा कार का मंजर और काल रात्रि आ जाती है ।
कोरोनावायरस जैसी बिमारियां सारे जग में छा जाती हैं ।।
मनुज मनुज न रहकर जैसे कंचुक सा ही बन जाता है ।
दुनिया का सारा भार फिर शिव कंधों पर आ जाता है ।।
शिव पार्वती मिल फिर सृष्ठी सृजन करते हैं ।
शिव मय होकर चराचर के प्राणी बनते बिगड़ते हैं ।।
शिव हैं सृष्टि के आदि और अंत शिव ही सत्य कहलाते हैं ।
सत्यम शिवम सुंदरम के भावों में शिव ही समा जाते हैं ।।
जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम
चन्द्र शेखर शर्मा मार्कण्डेय
जनपद अमरोहा उत्तर प्रदेश
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कविता