विधा: मनहरण घनाक्क्षरी छंद
(वार्णिक छंद)
दिन तो ढल गया वो,जो मेने देखा था वहां,बस तो मै भी यू,भरा देखा यह मां, मै कैसे भूलूंगा यार, मै तो एक इंसान हूं, दिमाग़ है इतना तो,दुनिया समझ जा,
आशिक़ रे हूं मै भी तो,देखा है यह संसार,तुमने मुझे भुला भी,इतना मेहरबां, लोगों ने ग़म सहा तो, मै भी सौ ग़म सहा जो,कहा होगा कोई जो भी,अपनी तो दास्तां
जीवन मिला है यूं तो, बितना चाहिए जो यूं,जीत हार तो होगा ही,उनका गुलिस्तां,आशा बनाकर। भी जो,हम तो चलते गय,है मगर यही तो जो,रे बनाओ दिल शां,मेरी ज़िन्दगी यहीं,बीत रहा है ऐसे ही, मंज़िल मिलेंगी जो भी,हमारी तो वास्ता,शायद होता है तो यूं,रंगीन करता होगा, मकाम तक जो भी यूं,होगा मेरा रास्ता
नसीब क्या होगा जो,डर लगता है अब, मेहनत पर भी तो,है भरोसा आस्था, फ़ेक दिया था फूल तो, मैने वो याद रखा,लम्हा भुला नहीं मै,यह तो मुझे पता,शायर हूं क्या मै जो,यकीन नहीं होता रे,भूल ग़लत होता ही,सबसे होता ख़ता,
कितना लिखा मैने जो,याद है वो मुझे भी, यहीं लिखावट मेरी,जीवन की महमां
मानव दे
बोंगाईगांव,असम
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कविता