वतन ने ललकारा अब हमें साथीयों
बादल संकट के अब होशियार साथीयों ॥
कोरोना महामारी का है प्रकोप साथीयों
इस से अपना बचाना वतन साथीयों ॥
रूखी सुखी खा काट लेंगे दिन साथीयों
अब तो घर से निकालना है बंद साथीयों ॥
पास जो हमारें वतन का ही साथीयों
कुर्बान करने कॊ हर पल तैयार साथीयों ॥
धन दौलत शोहरत पल पल साथीयों
वतन पर न्यौछावर ये तन साथीयों ॥
नही भूख से मरे यहाँ कोई साथीयों
. .मिल बाट खा लेंगे हम रोटियाँ साथीयों ॥
पास जो भी निर्दोष वतन का ही है
सब लूटा देगे हम वतन पर साथीयों ॥
हुक्म प्रधान का सर आँखो पर साथीयों
अब तो घर में ही रहना पसंद साथीयों ॥
निर्दोष लक्ष्य जैन
धनबाद
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कविता