शर्म शर्माती है

शर्म शर्माती है

राम बुद्ध गाँधी देश यहाँ
    अभी शर्म शर्माती है।
शमशान घाट तक बिजनस
      बदली लाशें आती है।
कोरोना किट और दवाई
      कागज पे रह जाते हैं।
कोरान्टाइन अति खर्चीले
      रोगी कतिपय पाते हैं।
संतान विमुख मात-पिता से
      केवल फिक्र जताते हैं।
तड़प-तड़प तरसे जीवन में
      फिर आश्रम आ जाते हैं।
राम बुद्ध गाँधी देश यहाँ
     अभी शर्म शर्माती हैं।
    धन्यवाद
प्रभाकर सिंह
नवगछिया, भागलपुर
     बिहार

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