अपने तेवर कड़े कड़े
घुटनों के बल बैठे गये हैं
देखो कितने बडे बडे
करुण रुदन सुन बसुधा का
सुर्य चंद्र हैं रुस्ट हुए
प्रेम प्रकर्ति से न कर पाये
आज मनुज सब भ्रस्ट हुए
ध्वस्त हो रहा बना बनाया
देख रहे हैं पडे पडे
आज प्रकृति ने दिखलाये
अपने तेवर कड़े कड़े
प्रेम प्यार में पास न आना
अब अपनो को भगा रहे हैं
जो मुसका था बैलों का
अब इंसां खुद लगा रहे हैं
तडप तडप मर कीट रहे थे
घोल घोल बिष छीट रहे थे
अब बारी आई है खुद की
तो सिर पकड कर पीट रहे थे
पास समय है चिंतन का
तब भी हैं हम अडे अडे
आज प्रकृती ने दिखलाये
अपने तेवर कड़े कड़े
कौन किसे बताये यहां पर
कितने सुपुर्द ए खाक हुए
धू धू कर हैं जलीं चितायें
अगणित हैं अब राख हुए
चित में चिंतन न था कभी
उस ओर कदम हैं बढे बढे
आज प्रकृति ने दिखलाये
अपने तेवर कड़े कड़े
उदय बीर सिंह गौर
खम्हौरा
बांदा
उत्तर प्रदेश
9793941034
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कविता