पंक्तियां
“महापर्व नवरात्रि है, सजा स्कंदमाता का आज दरबार,
बह रही थी गंगा ज्ञान की, भक्त उतरेंगे उस पार।
पद्म त्याग जब सिंह पर, माता हो जाती तुम सवार,
असुरी शक्तियां कर लेती हैं, दूर से हार को स्वीकार।
जब बढ़ गया दुनिया पर, दानवों का बड़ा अत्याचार,
देवासुर संग्राम हुआ और मचा दुष्टों में हाहाकार।
भक्ति गीत
स्कंदमाता पद्मासना देवी, तेरे सजे दरबार में भवानी,
देखो आज एक भक्त आया हुआ है, चरणों में अंजाना।
हाथ जोड़कर बारम्बार, करता है एक विनती मां तुमसे,
अपने चरण शरण में, दे दो इसे भी ठिकाना।
स्कंदमाता…………….
बड़ा अज्ञानी और महा मूर्ख, लगता है तेरा यह सेवक,
थोड़ी कृपा कर, इसे भी रास्ता कोई दिखाना।
सिंह तेरा वाहन प्यारा है, कमल तेरा सुआसन,
इस भक्त ने भी मां, तुमको ही है सब कुछ माना।
स्कंदमाता………………
चार भुजाओं वाला रूप तेरा, दो हाथों में पद्म,
खाली नहीं कोई लौटा, इसे भी नहीं लौटाना।
मोक्ष द्वार तुम खोलती हो, वर मुद्रा में लगती,
ज्ञान की थोड़ी बरखा, इस मूर्ख पर भी बरसाना।
स्कंदमाता………………..
कृष्णदेव की एक विनती, मां सबकी सुन लो पुकार,
अपने सेवकों के पथ से, अंधेरा जरूर दूर भगाना।
जीवन सफल हो जाए, पूजा अगर स्वीकार,
जैसे आज आई मैया, अगले वर्ष भी ऐसे ही तुम आना।
स्कंदमाता………………..
“या देवी सर्वभूतेषु स्कंदमाता रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो
नमः।“
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार
Tags:
गीत