देवताओं के बारह दिन होते 12 वर्षो के बराबर
अत: कुम्भ भी आता है 12 वर्षो के अन्तराल पर
सदियों से परम्परा का आंचल ओडकर
स्नेह और प्रेम के पुष्प बिखेरता
जीवन के हर पल को संवारने
बारह वर्षो बाद ये महाकुम्भ आता है
सूर्य और चन्द्र जब करते मेष नक्षत्र में प्रवेश
हरिद्वार ,उज्जैन , नासिक ,प्रयाग में होता कुम्भ का समावेश
मकर संक्रान्ति पर होती इसकी शुरुआत
इस दिन खुल जाते स्वर्ग के द्वार
कुम्भ में होता मानव और प्रकृति का संगम
भारतीय सभ्यता और संस्कृति का संगम
जन मानस में आन्तरिक ऊर्जा को जागृत करता
ये कुम्भ पवित्र कलश है कहलाता
कलश के मुख पर सदा विष्णु करते निवास
गरदन पर सदा ही शिव का होता वास
आधार पर ब्रह्म सदा ही विराजते
मध्य भाग पर समस्त देवी देवता है रहते
इसके भीतर का जल संपूर्ण भव सागर का प्रतीक
हिन्दु धर्म की आस्था श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक
भक्ति भाव ओत –प्रोत हो गंगा में डुबकी लगाते
नहा कुम्भ में पुण्य कर्म –फल को हैं पाते
ये कुम्भ आध्यात्मिक मूल्यों का करता प्रतिनिधित्व
जात –पात को मिटा विविधता में एकता को करता प्रदर्शित
मीनू सरदाना
Tags:
कविता