काल परी
चिता जली जो आज है
देश द्रोह के बाप है।
बीहड़ में क्यों हो छिपे?
वीरों के अनुपम रुपें।
हमको नक्सल तोड़ है
पर सैन्य क्षमा छोड़ हैं।
अथवा अभी तू मरता
फिर तू निरंतर जलता।
तब लिट्टे मारे गये
जड़ मूल उखाड़े गये।
होगा वही हर्ष अभी
दया नहीं!पाले तभी।
आओ धारा मुख्य है
सम्पन बन।न भूख है।
बढ़ेगा तू सँतान भी
तब पाता तू शान भी।
किन्तु मती है बस मरी
काल परी आगे खड़ी।
प्रभाकर सिंह
नवगछिया, भागलपुर
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कविता