बेज़बां दर्द

बेज़बां दर्द
तरही ग़ज़ल
रदीफ़-हुआ
हर्फ़े-क़वाफ़ी-आरा
क़ाफ़िया-सितारा
नापनी-१२२  १२२  १२२  १२

'जिसे छू लिया वो सितारा हुआ'।
नहीं  पर  मगर वो हमारा हुआ।।

थे हम एक सीड़ी वो ऊपर चढ़े।
हमारा  नहीं  फिर नज़ारा हुआ।।

मुहब्बत  नहीं  कोई  ख़ैरात  है।
न इसपर कभी हक़ हमारा हुआ।।

रहे  ख़ार बन पासवाँ की तरह।
वो गुलशन का यारब बहारा हुआ।।

सितम भी नहीं हैं करम भी नहीं।
नहीं अब तलक इक इशारा हुआ।।

रहे देख अब अपनी तन्हाई को।
लगे उनका हमसे किनारा हुआ।।

जहाँ  वो  रहे  मुस्कुराती  रहे।
भले वो न अपना सहारा हुआ।।

तरस अब न खाओ न हमदर्द हो।
न समंझो हमें की बिचारा हुआ।।

"बिसरिया"के जज़्बात वो क्यों सुनें।
सिला प्यार का यूँ क़रारा हुआ।।

बिसरिया"कानपुरी"

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