ये ज़िन्दगी एक किताब बनकर जब खूब पढ़ी जाती है ।
उस दिन क़लम के सिपाही की वो मेहनत काम आती है ।।
अपना दुख दर्द भूलकर जो औरों का दर्द महसूस करता है ।
शब्दों की मशाल बनाकर औरों का घर रौशन करता है ।।
तब महसूस होता है शब्दों का हार जिन्दगी में कैसे बनता है ।
एक लेखक एक कोने में बैठ कर दुनिया का हर हाल लिखता है ।।
डाक्टर सिपाही और सफाई कर्मी ही कोरोना योद्धा नहीं कहलाते ।
देखो एक पत्रकार जब खबरों की तलाश में सड़कों पर फिरता है।
ज़िन्दगी मौत की जंग हर रोज उसकी जिन्दगी में होती है ।
वो क़लम का सिपाही जब बेखौफ होकर मौत से भिड़ता है ।।
क़लम किसी के सम्मान की मोहताज नहीं जो रूक जाये ।
क़लम का सिपाही जिन्दगी में अपना वजूद खुद बनाता है ।।
खरीददार भी खूब मिलते हैं जिन्दगी को खरीदने के लिए ।
मगर क़लम का सिपाही हिमाचल से ऊंचा अपना सिर रखता है ।।
जिन्दगी का हर पहलू उसकी क़लम का हिस्सा बनता है ।।
क़लम का वो सिपाही कभी किसी सम्मान को नहीं तरसता है ।
चौथा स्तंभ बन कर जो देश की व्यवस्था को मजबूत करता है ।।
क़लम का सिपाही बाज सी आंखें और शब्दों में आग रखता है ।।
रक्षा करते हैं सीमा के प्रहरी सीमा पर वो उनका ख्याल रखता है।
क़लम का वो सिपाही समाज के हर हालात पर लिखता है ।।
हैं बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाओं का अंबार उन्हें ।
गर्व है अपनी क़लम पर और विश्वास है अपनी क़लम पर जिन्हें
हिन्द के वीर सपूत और जांवाज सिपाही है ये क़लम वीर ।
ज़िन्दगी भले ही मायूस रहें मगर नहीं दिखाते कभी अपनी पीर ।।
जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम
आपका अपना चन्द्र शेखर शर्मा मार्कण्डेय
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कविता