कहानियाँ सुनकर दो वीघा जमीन, जमीं जो पिता को पट्टे पर मिली थी , घूरेलाल के बेटे ने दान देकर अपने पुत्र कूढेलाल को उस दान दी हुई जमीन का युवराज घोषित कर दिया । जिस गरीब संस्था हेतु जमीन दान दी थी उसके संस्कार प्राप्त सज्जनों ने सोचा भी नहीं था कि जितने की जमीन नहीं थी , उससे कहीं अधिक तो उस जमीन पर भवन आदि खड़े कर दिये हैं ,लेकिन उनको विश्वास था कि इन दोनों लालों का सम्मान करेंगे तो पाठशाला खोल देँ । बात वही ढाक के तीन पात , अब वो लाल गुरूओं का भी अपमान करने से भी नहीं चूकते थे । फिर श्राप बश वह जमीं भी राखशाला बन गई क्योंकि जमीं पर जिसने भवन आदि बनवाये थे वो सज्जन उस भवन को अपनी खरीदी हुई जमीन पर स्थानांतरण कर ले गये । और वहाँ मधुशाला बन जाती है अब दौनों लाल मधुशाला बनवाकर सिर्फ कोई पिलादे इसलिये ही आते हैं ,पता नहीं अब कौन युवराज ?
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ , उत्तर प्रदेश ।
Tags:
लघुकथा