मासूमियत मजदूर बनती , पारिवारिक पाप है ।
जिन्दगी बर्बाद होती , बाल-श्रम अभिशाप है ।।
राग अध्ययन छूट जाते , फिर नशे में टूट जाते ।
साथ ही सपने सुहाने , गम लिये ही फूट जाते ।।
लूटती यह कुप्रथा जग , लाभदायक श्राप है।
जिन्दगी बर्वाद होती , बाल-श्रम अभिशाप है ।।
अन्त ऐसी रीति का हो, मन्त्र पाना चाहिए ।
होनहारों को व्य्वस्थित , तन्त्र लाना चाहिए ।।
हम भी ओढ़े हैं कयामत , राह में रँग छाप है ।
जिन्दगी बर्वाद होती , बाल-श्रम अभिशाप है ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज "
अलीगढ़ , उत्तर प्रदेश ।
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कविता