जलद काले ही छाये हैं
तुम्हारी घर-गली घूमे , दु:खद अहसास पाये हैं ।
सुखद अनुभव समेटा हूँ , जलद काले ही छाये हैं ।।
तुम्हें अपना बनाया था , मगर अहसान छोटे थे ।
सभी कर्तव्य अर्पण थे , निशा-दिन भाव खोटे थे ।।
रवि की साधना करते, नमन वन्दन पराये हैं ।
सुखद अनुभव समेटा हूँ, जलद काले ही छाये हैं ।।
सुना था ज्ञान देते हो , तमाशा भी हुआ हैरां ।
जमाने में बहुत अपने , मिलेंगे राह हो आसां ।।
जलधि क्या ? ढूड़ता जल को , नदी को सब चुराये हैं ।
सुखद अनुभव समेटा हूँ , जलद काले ही छाये हैं ।।
प्रबल थे जो कभी घर में, मौन के भाव सौदे हैं ।
हमारे प्रयत्न अर्थो के , सफलता के घरोंदे हैं ।।
कभी जग में टहल लेना , सदा कण-कण मिलाये हैं ।
सुखद अनुभव समेटा हूँ , जलद काले ही छाये हैं ।।
ना आऊँ याद सपनों में , ना पाना मन के झीने में ।
कोई रोता हुआ दीखे , समझना मैं हूँ सीने में ।।
अनुज पर जो सितम करता , वही गंगा नहाये हैं ।
सुखद अनुभव समेटा हूँ , जलद काले ही छाये हैं ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ , उत्तर प्रदेश ।
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कविता