घरेलू महिला

घरेलू महिला

निशब्द से खड़ी रह जाती हूं
अपनी ही पहचान अपनों में
ढूंढती हूं यह सोच कर रोज
क्या सभी का ख्याल रख पाती हूं।।

सुबह से लेकर श्याम अपनी मैं
समर्पित करती हूं पूरे परिवार को,
कर्तव्यनिष्ठ के साथ करती हूं सदैव
मैं  घर के सारे मेरे काम  को ।।

मां हूं ,बहन हूं ,बेटी हूं, बहू भी हूं,
इन्हीं नामों में बटी है मेरी जिंदगी
रोज खोजती हूं मैं इन्ही नामों में
छुपी हुई स्वयं की पहचान को।।

हां घरेलू महिला हूं मैं एक
यह जिम्मेदारी मैंने चुनी है,
मुझे शिकायत नहीं किसी से
न नफरत घरेलू महिला के नाम से।।

पर काम करती हूं मैं
बहुत काम करती हूं
परिवार संभाला है मैंने
अपना स्टेटस छोड़कर
बच्चों को पाला है मैंने ।।

मुझे नई पीढ़ी को
संस्कारवान बनाना है
अपनी पहचान छोड़कर
बच्चों का भविष्य बनाना है।।

अब बच्चे ही पहचान मेरी 
एक अच्छी घरेलू महिला
एक अच्छी मां, पत्नी, बहू ,बेटी
सदैव अच्छे व्यक्तित्व की महिला कहलाऊँगी।।

@ प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
लश्कर ग्वालियर
स्वरचित मौलिक रचना

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