छाए फिर बादल असाड़ के ,वर्षा ऋतु का हुआ आगमन!

विषय :– आषाढ़ के बादल
विधा :–  कविता
शीर्षक  वर्षा ऋतु 

छाए फिर बादल असाड़ के ,वर्षा ऋतु का हुआ आगमन!
मिट्टी की सोंधी सोंधी खुशबू संग प्रसन्न हो रहा मेरा मन।।

रिमझिम रिमझिम बारिश गिरे सब बीमारी और कष्ट मिटे ,
गर्मी से जो झुलस गया था उस तन की हर व्याधि हटे ।।

जेठ माह के बाद किसान आषाढ़ माह की राह तकते,
कब बादल आए बारिश के, उनके खेतों पर मेघ गिरे।।

प्रिय महीना है भगवन का ,तुलसी हर घर खूब फले,
करके आराधना सूर्य देव की ,मंगल के सारे कष्ट मिटे।।

आषाढ़ माह के शुरु होते है ,काले बादल गरज रहें,
चमक रही है दामिनी नभ में, चहुं ओर ये शोर करे।।

वर्षा ऋतु के आगमन से ही चित प्रसन्न हो जाता है,
हरी चुनर ओढ़कर प्रकृति का श्रंगार पूर्ण हो जाता है।।

यह माना आषाढ़ में बादल से अमृत थोड़ा कम बरसता है
पर हर किसान का मन इसी अमृत के लिए ही तरसता है।।

नई नई कोपलों का हो रहा जन्म पौधे हो रहे है सब प्रसन्न 
जैसे आषाढ महा के आने से धरती पर आया हो यौवन।।

©® स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना
प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर  मध्य प्रदेश

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