आज के दौर में महिलाओं की भूमिका और उससे जुड़ा है नारी का सशक्तिकरण । सशक्तिकरण शब्द के सुनने मात्र से यह विचार अवश्य आता है आखिरकार महिलाओं का सशक्तिकरण क्यों जरूरी है और इसमें महिलाओं की क्या भूमिका है।
1.महिलाओं की भूमिका:– यहां पर महिलाओं की भूमिका तब स्पष्ट हो जाती है जब कोई महिला अपने खुले विचार रखते हुए समस्त महिलाओं के लिए इस बदलते दौर के सामाजिक समीकरणों एवं समस्त प्रकार के बदलाव को स्वीकार करते हुए महिलाओं के लिए जो चुनौतियां समाज में उत्पन्न हो रही है उस से लड़कर आगे आती है और सभी महिलाओं के लिए माध्यम के रूप में प्रस्तुत होती है स्वयं महिलाओं के सशक्त होने के लिए और यहीं से महिला सशक्तिकरण की शुरुआत भी होती है।
2 महिलाओं का सशक्तिकरण : –साधारण शब्दों में महिलाओं के सशक्तिकरण का मतलब है कि महिलाओं को अपनी जिंदगी का फैसला करने की स्वतंत्रता देना ताकि उनमें ऐसी क्षमताएं पैदा हो सके जो उन्हें समाज में अपना सही स्थान स्थापित करने योग्य बना सकें। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक महिला की स्थिति-सामाजिक , राजनीतिक और आर्थिक रूप से समान नहीं रही है जिसके चलते महिलाओं के हालातों में कई बार बदलाव हुए हैं। प्राचीन भारत में महिलाओं को पुरुषों के समान दर्जा प्राप्त था शुरुआती वैदिक काल में वे बहुत ही शिक्षित थी। हमारे प्राचीन ग्रंथों में मैत्रयी जैसी महिला संतों के उदहारण भी हैं। हमें हमारे समाज में हमें हमारे समाज में महिलाओं के सशक्तिकरण की आवश्यकता उनको स्वतंत्र रूप से अपने अधिकारों का निर्वाह करने के लिए भी पढ़ती है क्योंकि हमारे ही समाज में सभी प्रकार की भेदभावपूर्ण प्रथाएँ बाल विवाह, नगर वधु, सती प्रथा देवदासी आदि से यह समानता शुरू हुई हैं। यथासंभव इन कुप्रथा और पुरुष प्रधान देश में महिलाओं के लिए विचारों में नवीनीकरण नवीनीकरण और महिलाओं का सशक्तिकरण आवश्यक है।
3.महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता :– महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता हमें समाज में बढ़ रहे महिलाओं पर अत्याचार व अराजकता को रोकने के लिए बेहद जरूरी है। हर धर्म हमें महिलाओं के सम्मान और शिष्टता के साथ व्यवहार की बात की जाती है । एक ओर आज के आधुनिक समाज की सोच विकसित हो रही है वही दूसरी ओर महिलाओं के खिलाफ उनके शारीरिक और मानसिक शोषण के प्रकरण सामने आ रहे है । आज समाज में कई प्रकार की कुरीतियाँ और प्रथाएँ आदर्श बन गई हैं। जैसे सतीप्रथा, दहेज प्रथा, परदा प्रथा, भ्रूण हत्या, पत्नी को जलाना, यौन हिंसा, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और अन्य विभिन्न प्रकार के व्यवहार ऐसे सभी कार्यों में शारीरिक और मानसिक शोषण भी शामिल हैं।
आज महिला सशक्तिकरण के लिए कई ऐसी सामाजिक संस्थाएं एवम सरकार भी आगे आकर खड़ी हो गई है जहां पुरुषों का सशक्तिकरण होना चाहिए वहां महिलाओं का भी होना चाहिए क्योंकि महिलाएं भी हमारी आबादी का 50% हिस्सा है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि कहीं महिलाएं वर्तमान काल में कु– प्रथाओं के चलते हालातों का शिकार ना हो जाए। महिलाओं के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं जिसमें बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ प्रमुख है सरकार की ओर से। कई जगह तो देखा गया है गांव में यदि कोई बेटी सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी हो तो आज के इस युग में सम्मान के तौर पर 15 अगस्त एवं 26 जनवरी को ध्वजारोहण बिटिया द्वारा ही कराए जाने की परंपरा भी बन रही है यह एक समाज की बेटियों के लिए अच्छी भागीदारी साबित हो रही है ताकि और भी बेटियों के मनोबल को बढ़ाया जा सके आज स्त्री ही स्त्री को आगे लेकर आ रही है और यही से एक सभ्य समाज की शुरुआत भी हो रही है यही महिलाओं का असली सशक्तिकरण है।
प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर मध्य प्रदेश
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