आधुनिकता की चकाचौंध ( मातृभाषा का सम्मान)

आधुनिकता की चकाचौंध ( मातृभाषा का सम्मान)
   मै आकांक्षा रूपा  हिंदी की नन्ही सेवी  दिल की कलम से सच्चाई के मोती समाज  के समक्ष  प्रस्तुत  करना चाहती हूँ।
आप सभी को ,मेरे अहसास और हकीकत  का आईना, समाज की आधुनिक  पीढी के लिए  संदेश साझा करना चाहती हूँ।
मातृभाषा माँ के रूप की भांति होती है। ऐसा मेरा मानना है।
आधुनिकता  के चलन मे दिखावे की चकाचौंध  बनावटी आचरण, विदेशी भाषा को अपनाकर संस्कारो  की मिठास को भूल कर नई पीढी  मातृ भाषा को बोलने मे संकोच कर  अंग्रेजी भाषा बोल कर इतराती है।
मातृभाषा मानो साधारण परिवेश  की सीधी- सादी सूती साड़ी मे लिपटी सौम्य माँ जो अपने आँचल मे संस्कारो की मिठास समेटे गुमसुम  बोझिल रूआसी  कुछ कहना चाहती है कि मुझे बोलने मे क्यो शर्माते हो।
माँ- बापू जी बुलाना पुराना प्रतीत होता है।माॅम डैड पुकारने मे  मार्डन  होना झुकाता है।माँ-बापू जी शब्दो से सम्मान की सुगंध  महसूस होती थी।
" सभी भाषाओ का करो सम्मान।
सरस सभी भाषाएं।
जिस मिट्टी से जन्मे हम ,मातृभाषा,मातृभूमि
जननी का करो, सदा सम्मान "।
संस्कारो की सौरभ से  भारत के हर घर को महकाना है।मातृभाषा ,शुद्ध  आचरण से जननी को सम्मान  दिलवाना है।भारतीय होने  पर गर्व हो हमे  स्वस्थ  तन मन , आदर,सहयोग की भावना हो सब मे , जिस भाषा को समझने मे सरलता हो बोले वही सबके साथ।
मेरे देश की आधुनिक  पीढी मेरे देश का भविष्य  है। आने वाले कल को संदेश पहुंचाना है।
भारत का गौरव नई पीढी है।
सत् संगति एवं संस्कारो की महक अपना कर
मातृभाषा के सम्मान  का बीढा  उठा कर सभी भाषाओ के प्रति श्रद्धा भाव रख कर । अपनी मातृभाषा का सम्मान  उसका अधिक  से अधिक  प्रयोग  करके  मान सम्मान  बढाना है।

आकांक्षा  रूपा
कटक ओडिशा
संस्थान- गुरू नानक पब्लिक स्कूल कटक
पद- हिंदी  मुख्य विभागाध्यक्ष

कवियत्री ,लेखिका, समाज सेविका

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