पीहर

पीहर
माँ  तेरा प्यार  बहुत याद आता है।
तुमसे मिलने को मन  तडपता है।
तेरे आँचल को एक पल नही छोडती थी।
तेरी गोद मे लेट कर खुली आँखों से सपने
बुनती थी।
जब मै जिद करके नाराज होती थी।
पापा का मेरे सिर को सहलाना याद आता है।
कच्ची पक्की  रोटियो को अमृत समझ के
खाना,मेरी नादानियो  को चुटकी  बजाकर
माँ  तेरे गुस्से से बचाना, दीदी की फटकार,भाई का बेशुमार  प्यार ,माँ  मुझे  मायका बहुत  याद आता है।
मनपसंद खाना,मस्ती  मे रहना, अलहड सा बचपन
बहुत  याद आता है।
माँ  एक राज तुझे बताना है
तेरी बेटी को अब ससुराल  मे  हर हाल मे मुस्कुराना है
बिन खाये भी ,बिन सोये भी,हर दुख को सहना सीख गई।
लाख कोशिश  करके भी ,कुछ ताने पीडा सह कर ही
न दिल के जख्म  दिखाना है।
तेरी बेटी को  आँसू पी मुस्कुराना है।
रेशमी अहसासों से पली बडी , ना जो नखरों वाली थी
जिम्मेदारी निभाने मे अब तेरी बेटी  दर्पण निहारना भूल गई, माँ  मुझे  क्यो अपने से दूर किया।
हालातो ने मजबूर किया।
तुझे मिलने को तडपती हूँ।
दिल का हाल कैसे बयान करूँ।
ये कैसे बंधन समाज के
तेरी झलक पाने को ,सौ सौ यत्न  करके भी
सारे फर्ज  निभा कर भी , फटकारी जाऊँ मै,
आँसूओं के सैलाब को अपने मन मे दबाऊँ
कितने भी यत्न करके भी मै, पापा की शहजादी 
आपकी की रानी बेटी
ससुराल  मे रानी बहू न बनपाऊँ
मै ,
काश !कुछ ऐसा हो जाता।
हाथ पकड कर जो अपने साथ अध्दगिनी बना
कर लाता है।
माँ बाप के बिछुडने का दुख  वो समझ पाता।
माँ  बेटी  की जान होती है।
बेटी के रूप  देने वाले सृजनहार,सृष्टि  के मालिक
बेटी के रूप को देना है।

तो कोमल ह्दय न दे दिल काँच की तरह तोडने
वालो को अहसास  नही होता।
पूरी रात माँ  बाप की याद मे तडपने वाली आँखें
सुबह सब की देखभाल  करती है।
हजार अच्छाई  न देख पाया कोई
एक गलती की  सजा सौ बार सुनाई जाती है।
माँ  हर बार तुझे आँसू पोछ कर कहती हूँ।
ससुराल  मे तेरी बेटी  पलको पर बैठाई जाती है।
अब तो मैने उदासी मे भी मुस्कुराना  सीख  लिया।
पीहर मेरा छूट गया।
दिल मे कसक उठती है।
मर्यादा  की बेढियो मे मेरा पीहर मुझ से दूर हुआ।
माँ  मुझे पीहर   याद  आता है।
आकांक्षा रूपा चचरा
संस्थान- गुरू नानक पब्लिक स्कूल कटक
ओडिशा
पद- शिक्षिका,कवयित्री, समाज सेविका

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