कल्पवृक्ष सी छाया( हमारे बुजुर्ग)

 कल्पवृक्ष सी छाया( हमारे  बुजुर्ग)
लोग पहचान नही सके,  जिसको
बरबस तानो से प्रहार किया
बंधनों मे बांध कर रूढिवादियो ने
रीतिरिवाजों का नाम दिया।
मन की कोमल भावनाओं  का संहार किया
समाज  के कठोर  रिवाजों ने
मन के कोमल  फूलों की पंखुडियो को
भी कुचल डाला।
लोक लाज बचाने के लिए
बेमानी रिश्ते  निभाने  के लिए
अफसोस  कहर ही  डाला।
कहते थे खून के रिश्ते  ही सच्चे होते  है
एक माँ की कोख से जन्म  लेने वाले रिश्ते
ही सच्चे होते है।
बचपन मे माँ  को अपनी ममता मे बाँधने वाले
पिता को जरूरतों की महत्वाकांक्षा की उडान  मे झोकने
वाले  बच्चों  ने,कैसा अनर्थ कर डाला ,
जिंदगी  भर पाला पलकों पर बैठा कर
बेरहम कुछ  रिश्तो ने ममता का गला भी घोट डाला
हाय कैसा कुकर्म  हुआ ,जिनको पाला था उम्मीदो से
उन्होंने  वृद्धावस्था मे वृद्धाआश्रम मे ही भेज दिया।
सच्चाई की चादर ओढे क्यो ढोंग  करे है समाज मे
घर मे दो वक्त की  रोटी  बूढी माँ  को देने मे कष्ट
होता है।
भंडारा करे दिखावे मे,
साक्षात माँ-बाप ईश्वर  है।
इनकी दुआओं मे सब है।
इनके दिल को दुखाना महापाप है।
इनके कदमों मे जन्नत  का सुख  है।
इन्हे खुश रखना परम कर्तव्य  है।
इनके  जाने के बाद लोक दिखावे,भंडारे चलाने
से क्या फायदा।
अपनो को ओस की बूंदों  की भांति  सँभालना।
दिल टूटने की आवाज़ नही होती।।
दर्द  बडा गहरा होता है।
माला के मनको सी जिंदगी  बीत जाएगी
जो  कल तेरा था वो आज मेरा
और कल किसी और का
ये दुनिया  रैन बसेरा।
सच्चाई  की  मटकी सिर पर रख सच बटोर लो
सबके  दिल  मे रब बसता है

दिल  कभी न किसी का तोडो
दिखावे की  चकाचौंध  मे सच्चे , रिश्ते तो कभी ना छोडो।
माँ बाप  कभी पुराने  बेबुनियाद सोच वाले नही होते।
नई पीढी अपना नजरिया  बदल लेती है।
अच्छी सोच ,साधारण  पहनावा,ऊँचे विचार 
ही
मानवता की पहचान  बन जाती है।
बुजुर्गो को स्नेह की अभिलाषा  होती है।
दौलत तो उन्होंने  ता उम्र कमाई होती है।
जब हमे उनकी जरूरत थी।
हमे बडा करने मे उन्होने  जवानी भी वार दी।
हमारी जरूरतों के सामने अपनी भूख ,प्यास
भी न्यौछावर  कर दी।
आओ उनके  बुढापे को सँभाल ले।
तानो और छींटा कशी नही 
उन्हे सम्मान और ढेर सारा प्यार  दे।
        आकांक्षा  रूपा चचरा
     पद-शिक्षिका एवम् कवयित्री
कटक ओडिशा

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