कौन हो तुम जो हरपल सांसों में घुल-मिल कर रहते हो?
कौन हो तुम कभी कभी कानों में आकर कुछ कहते हो ?
कौन हो तुम यादों की गहराइयों में जो हमेशा ही रहते हो?
कौन हो तुम जीवन के सपने सजाकर चले जाते हो ?
मैं योगी तो नहीं जो बन्द आंखों से तुमको कभी देख सकूं ।
मैं प्रेम का ऐसा मतवाला भी नहीं जो तेरे पीछे भाग सकूं ।।
हां मैं इंसान हूं इंसानियत का भाव सबमें पैदा करता हूं ।
अपने दुख से न घबराकर सबमें हौसला भरता रहता हूं ।।
कौन हो कौन हो कौन हो जीवन में तुम्हें समझ नहीं पाता हूं ।
तुम्हारे बिन सुख की सांस और चैन की नींद नहीं सो पाता हूं ।।
दिल के किसी कोने में रहकर हरपल दस्तक सी देते हो ।
जीवन के हर पल में बसकर सांसों का झोंका चलाते हो ।।
आखिर कौन हो तुम जो मुझको पल-पल यूं ही तड़पाते हो ।
कभी श्रंगार कभी वीर कभी रहस्यमय से हो जाते हो ।।
ब्रह्मा विष्णु महेश आदि देव शायद तुम कहलाते हो ।
या किसी प्रेयसी के प्रिय या योगियों के ईश्वर कहलाते हो ।।
कौन हो कौन हो तुम जो मुझको पल-पल मार्ग दिखाते हो ।
हर संकट से बचाकर सहर्ष ही कहीं और ले तुम जाते हो ।।
दिन में रात में सुबह-शाम हरदम ही याद तुम मुझे आते हो ।
आखिर आंधी तूफान हर संकट से पल-पल कैसे तुम बचाते हो ।।
तुम तुम हो मैं भी तुम हूं तुम का भेद कभी नहीं मुझे समझाते हो ।
क्या लगते हो तुम मेरे नाम का प्रकाश विश्व में फैलाते हो ।।
जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम
चन्द्र शेखर शर्मा मार्कंडेय जनपद अमरोहा उत्तर प्रदेश
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कविता