योग
जीवन को अमृत तुल्य बनाना है तो योग में रम जाना होगा ।
भोग युक्त जीवन हमको अब योग युक्त जीवन बनाना होगा ।।
यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान ।
जीवन के पथ पर चलकर हम लें इन सबका पूर्ण संज्ञान ।।
जोड़ना घटाना गुणा भाग जीवन में हरपल चलता रहता ।
उत्थान पतन होकर हमेशा वायु वेग हरपल बढ़ता रहता ।।
नीर समीर गगन के तारे भी हरपल गतिमान रहते हैं ।
जीवन के झंझावातों में देखो कैसे हम डरते से रहते हैं ।।
आत्मा और परमात्मा का मिलन ही तो योग कहलाता है ।
आंधियों और तूफानों का बड़ा बवंडर चलना सिखाता है ।।
कठिन संघर्षों को जीत जो जीवन में सफल हो जाता है ।
कृष्ण अर्जुन से कहते हैं निष्काम कर्म ही योग कहलाता है ।।
जैसा तुम बोया करते वैसा ही योग काटना सिखाता है ।
प्राणायाम धारणा ध्यान जीवन को अमृत तुल्य बनाता है ।।
जीवन में जब कभी हम थक हार कर बैठ जाते हैं।
चिंता की अग्नि में जलकर मृत्यु की गोद में चले जाते हैं ।।
चिता और चिंता दोनों ही हम सबको जलाती रहती है ।
एक शनै शनै तो एक तेजी से तन को राख कर जाती है ।।
चिन्तन मनन और ध्यान हम सबको इनसे बचाता है ।
तन मन आत्मा और परमात्मा का रिश्ता हमको समझाता है ।।
यही योग है जो हम सबको मिलजुलकर रहना सिखाता है ।
साधारण जीवन में भी सुर्य का तेज भर कर रहना सिखाता है ।।
जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम
चन्द्र शेखर शर्मा मार्कंडेय जनपद अमरोहा उत्तर प्रदेश
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कविता