रूह की गहराइयों मे तुझे संभाला हमने
हाथ मे ओस की बूंदो सा महसूस किया
नाजुक रेशम सा तू अनमोल इतना
तेरे इश्क की खुशबू को जह्नन में
उतारा हमने इस कदर कि हम
जमाने भर की उलफतो से दूर हो गए
तेरे बिना जीने की कल्पना ना की थी
एक पल अब बंजर मरू की तपन मे
जलने लगे हम
लम्हा लम्हा तेरा दूर जाना
बात बात पर नाराजगी के
जिलतो के सितम सह रहे है हम
आस इतनी है तुम लौट कर आगे
मेरे अहसास को शायद
समझ पाओगे........
रूह मे उतर कर कैसे
दिल से उतार सकते हो
उम्मीद है तुम एक दिन
जरूर लौट आओगे.......
सुख जीवन मे हो ।
सुख के इंतजार मे
पलके बिछाये बैठे है।
आकांक्षा रूपा चचरा
संस्थान-गुरू नानक पब्लिक स्कूल कटक
ओडिशा
पद-वरिष्ठ कवियत्री , शिक्षिका, समाज सेविका
लखनऊ-अरूणोदय त्रैमासिक पत्रिका ( ब्यूरो चीफ़)
विश्व हिंदी संस्थान कनाडा -सहित्य रथी सम्मान
साहित्य शक्ति संस्थान देवरिया बिहार - संयोजक
हिमाक्षरा साई अस्मिता सम्मान-काव्य रथी सम्मान
विश्व भारती हिंदी सम्मान - साहित्य रथी सम्मान
विश्व जन चेतना ट्रस्ट-वागीश्वरी पुञ्ज सम्मान से सम्मानित
अंतरराष्ट्रीय सम्मान-बेस्टी ऐजुकेशन साहित्यिक संस्थान-काव्य श्री सम्मान
अखिल भारतीय काव्य सम्मेलन- राष्ट्रीय कवि दिनकर सम्मान
अरुणोदय साहित्यिक मंच-काव्य श्री सम्मान , साहित्य रथी सम्मान
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कविता