मैं चांद सितारे में खोज खोज कर कुछ नयी कविताएं लाता हूं ।
अनगिनत शब्दों के मोतियों से कविताओं के हार बनाता हूं ।।
सोचता हूं टिमटिमाते तारे कितने सुन्दर से लगते हैं रात्रि में ।
सुबह उठता हूं तो एक बड़े तारे का प्रकाश धरती पर पाता हूं ।।
सुबह ओंस कणों में जगह-जगह बिखरे हीरे-जवाहरात देखता हूं ।
रात्रि में उन्हीं हीरे-जवाहरात को आसमान के छितिज में पाता हूं।।
आसमान में बिखरती रंग-बिरंगे तारों की चादर मन मोह लेती है।
अपने मन में भी में कितने तारों जैसे ही सुन्दर सपने सजाता हूं।।
अजीब लालसा जो आसमान को छूने की कोशिश में लगी रहती है ।
वृक्षों के बिन हरियाली पैसे के बिन दिवाली सपना सा लगती है।
लेकिन सपनों की सीढ़ी बनाकर मैं रोज आसमान में चढ़ जाता हूं।
चुन चुन कर कुछ हीरे मोती रोज ही सबको ही खूब दिखलाता हूं।।
बालक जवानी और अधेड़ उम्र में मैं हमेशा बालक सा बन जाता हूं।
कविताओं में रंग बिरंगे रंग भरकर मैं दूर गगन की सैर कर आता हूं।
लम्बा चौड़ा चांद देखकर सितारों को कुछ छोटा-सा मैं पाता हूं ।
चमचमाते सितारे में खोया हुआ भाग्य ढूंढने आसमान में जाता हूं।
कितने दूर होकर भी गतिमान तारों की गोद में सो जाता हूं ।
सुबह उठकर ओस की बूंदों में ही चमचमाते हुए उन्हें मैं पाता हूं ।।
जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम
चन्द्र शेखर शर्मा मार्कंडेय जनपद अमरोहा उत्तर प्रदेश
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कविता