एक छोटी सी चींटी दाना लेकर दीवार पर चढ़ती है ।
बार बार चढ़ कर फिर भी तेजी से फिसलती रहती है ।।
मगर हौसला क़ायम रखकर फिर से मेहनत करतीं हैं ।
आखिर में मेहनत के बलबूते मंजिल पूरी करती है ।।
धक हार कर बैठ गया जो सफल कभी न हो सकता ।
हारा हुआ सिपाही कभी देश के काम न आ सकता ।।
भागीरथ को देखो जरा गंगा कैसे धरती पर लाता है ।
पूर्वजों का उद्धार कर हरियाली सजा सकता है ।।
सीता की खोज में राम भटककर लंका तक जाते हैं ।
दुराचारी रावण को मारकर सीता को लेकर आते हैं ।।
कंस के अत्याचारों से जन जन भय से कांपा करता ।
होता अत्याचार देख बिष्णु का सिंहासन डोला करता ।।
कृष्ण धरा पर आकर कंस को हरा जन को मुक्त कराते हैं ।
असफल इंसान तब खुद की शक्ति को पहचान पाते हैं ।।
चोर लुटेरे धन लूटकर जब रफूचक्कर हो जाते हैं ।
भय से कंपित होकर हम उनका सामना नहीं कर पाते हैं ।।
बढ़ जाता है दुस्साहस उनका और भी शिकार बन जाते हैं ।
थके हारे मन के फिर दुष्परिणाम बड़े हो जाते हैं ।।
जहाज समुद्र में होते हैं बड़े बड़े तूफान उनसे टकराते हैं ।
कुशल मल्लाह नाव जहाज को सकुशल निकाल ले जाते हैं ।।
जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम
चन्द्र शेखर शर्मा मार्कंडेय जनपद अमरोहा उत्तर प्रदेश
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कविता