जीवन के लिए अमृत जो व्यर्थ हम बहा जाते हैं ।
कम होते रोज पानी की कीमत नहीं समझ पाते हैं ।।
अन्न प्रदूषण जलप्रदूषण वायु प्रदूषण बढ़ता जाता है ।
लगता है आज हर इंसान ज़हर ही तो प्रतिदिन खाता है ।।
बारिश के पानी को हम फिर से भूमि में रोपित कर दें ।
न बहने दें वर्षा जल को मिलकर कूप तडाग में संचय कर दें ।।
कर दे धरती को हरा भरा आओ मिलकर वृक्षारोपण कर दें ।
दो बच्चों का नियम बनें आओ जनसंख्या नियंत्रण कर दें ।।
पानी की कीमत को समझें व्यर्थ बहने का निष्कासन कर दें ।
बूंद बूंद पानी इकट्ठा करके कूप तडाग फिर से हम भर दें ।।
न हो किल्लत पानी की प्रेम सौहार्द से इसको मीठा कर दें ।
नहरों को खुदवाकर रेगिस्तान को भी हरा भरा उपजाऊ कर दें ।।
जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम
चन्द्र शेखर शर्मा मार्कंडेय जनपद अमरोहा उत्तर प्रदेश
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कविता