गुजरे हुए पलो को संजोने लगे।
आज अतीत की यादो मे खोने लगे।
रिश्तो की चादर झीनी सी लगने लगी।
हम भावनाओ मे बहने लगे।।
अल्हड़पन की मस्ती , रूठना मनाना।
गुड़िया की शादी मे आँसू बहाना ।
मीठी यादो का पिटारा दिल मे मिठास
घोलने लगा।।
आज मेरा मन बावरा बन अतीत मे
डोलने लगा।
गाँव की गलियाँ, आम की डाली
नीम के पेड़ो पर झूला जो झूले
बचपन की चाहत को कैसे भूले।।
वो गुजरा जमाना , कभी न भूलाना।।
गुजरे पलो को अंतर्मन मे समाना।
स्मृतियो की दस्तक की खुशबू
से महके तन मन
वो गुजरा जमाना•••••••
आकांक्षा रूपा
कटक ओडिशा
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कविता