अपना जीवन तो
गीत बनाने मे बीत गया!
घटती रही;
घटती रही घटनाएं
नाहक पीड़ा होगी
छोड़ो क्या सुनाएं
मैदान मेरा,लड़ाई मेरी
जीत;कोई और जीत गया!
अपेक्षित नहीं हूँ
किसी भी तख़्त का
तीमारदार समझो
बस मुझे वक्त का
सब गए;
दुश्मन गया मनमीत गया!
पीड़ाओं को
माले में पिरोया
चुल्लू भर पानी से
नहाया धोया
हरियाली जा रहीं है
वसंत का पीत गया!
मोती नहीं है
आंखों से झरता पानी
कब तक करेंगे हम
बच्चों सी नादानी
कोई दौड़े पकड़े
वरना अतीत गया!
सुधांशु पांडे'निराला'
प्रयाग,उत्तर प्रदेश.
संपर्क सूत्र:-9555469742.
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कविता