विदा कर दे
जिम्मेदारियों को सारी
अब तूँ रिहा कर दे...!
देर ना कर बाबुल
अब तूँ विदा कर दे...!!
टूट जाने दे अब डालीं से उस फूल को,
भवरों को अब तूँ आजाद कर दे...!
देर ना कर बाबुल
अब तूँ विदा कर दे...!!
बिलखने दे आँसुओं
की धाराओं को...!
बह जाने दे खामोशी
की जुबां को...!!
बिन मेरे जीने का
अब तूँ वादा कर दे...!
देर ना कर बाबुल
अब तूँ विदा कर दे...!!
जिन्दगी पूरी अपनी
मुझ पर वारी...!
रहने दी सभी ख्वाहिशें भी
अपनी अधूरी सारी...!!
रहन सहन अपना
अब तूँ सादा कर दे...!
देर ना कर बाबुल
अब तूँ विदा कर दे...!!
छूट जाने दे तेरी उंगली
से मेरे हाथ को...!
टूट जाने दे उन मासूम
खिलौनों के साथ को...!!
नजदीकियाँ मुझसे थोड़ी
अब तूँ ज्यादा कर दे...!
देर ना कर बाबुल
अब तूँ विदा कर दे...!!
कु. आरती सुधाकर सिरसाट
बुरहानपुर मध्यप्रदेश
मौलिक एवं स्वरचित रचना।
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कविता