"""""""""""""""""""""""""
सीधी सादी बहू पाकर,
सासू मां की बांछें खिल गई,
सोचने लगी, बिना व्रत उपवास के,
मुझे, मेरी पसन्द की बहू मिल गई !
उसे फिर अपनी ही सासू मां की याद आ गई,
गृह कलह की सारी बातें, दिल में छा गईं!
बात बात पर जब वह करती थी क्रोध,
नहीं कर पाती थी, कुछ भी विरोध!
अब उन सारी बातों का बदला लूंगी,
जितने कष्ट सहे हैं मैने,
दुगना अपनी बहू को मैं दूंगी!
आखिर मैं भी तो एक सास हूं,
ऐसी वैसी नहीं हूं, बहुत ख़ास हूं!
बहू को सताने की पुरानी परम्परा है,
मैं भी निभाऊंगी, इसमें क्या धरा है,
हालांकि यह काम भी जोखिम भरा है?
यूं सोचती हुई, सासू मां उत्साह से भर उठी,
"अरे, ओ बहू, करमजली झूठी,
दिखाना तो मुझे तेरे सोने की अंगूठी?
मुझे लगता है कि यह नकली है,
सोने का रंग चढ़ा है, ये पीतल की है!"
सासू मां की बातें सुनकर बहू ने कहा___
"पता नहीं मां जी, अंगूठी किस धातु की है,
बस इतना ही याद है कि,
मुझे यह अंगूठी आपने ही दी है !"
सुनकर सासू मां के होश उड़ गए,
बहू को सताने की बात भूलकर , गले लगा लिया,
लगा कि, सास बहू रानी दोनों के तार जुड़ गए
#पद्म मुख पंडा ग्राम महा पल्ली
जिला रायगढ़ छत्तीस गढ़
Tags:
कविता