नारी के प्रति दृष्टिकोण को लेकर मेरे मन में एक ही बात आती है । धीरे-धीरे अपनी प्रगति की ओर अग्रसर होती इस नए जमाने की नव –नार को अपने आप को साबित करने के लिए बहुत ही संघर्ष मय जीवन जीना पड़ता है। एक और जीवन में बढ़ती प्रतिस्पर्धा और दूसरी और पारिवारिक जिम्मेदारी दोनों में संतुलन बना कर चलना ही इस आधुनिक नारी का सबसे बड़ा संकल्प है। परंतु आज सामाजिक स्तर पर इस आधुनिक युग की नारी को कई प्रकार की मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है ! जैसे कि एक स्वतंत्र विचार की नारी क्योंकि वह खुली सोच की है और सभी से बात करनी में समानता रखती है । इसके बाबजूद भी उनका यह स्वतंत्र रूप को अपनाने की जगह उनके चरित्र पर लोग उंगलियां उठाते हैं ,परंतु वह यह भूल जाते हैं कि समाज में इतनी सारी जिम्मेदारी संभालने के लिए सभी से मेलजोल रखना और सभी को लेकर चलना एक उचित व्यवस्था है। क्योंकि वह नारी है और किसी से ज्यादा मेल जोल रखना एवम बात करना उसके हित में नहीं। समाज में" नारी के प्रति दृष्टिकोण" बदलने के लिए हमें अपनी सोच को स्वतंत्र एवं सकारात्मक करना होगा। तभी समाज में बदलाव आएगा और नारी के प्रति उनके चरित्र को लेकर लगने वाला यह दृष्टिकोण भी बदलेगा।
इसी के संदर्भ में आपको यहां एक लघु कथा प्रस्तुत करने जा रही हूं।
चंचल नाम से भी चंचल और अपने मन से भी चंचल थी। वह अपने और पराए का भेद नहीं करती थी। वह एक गुरुद्वारे में सेवादार होने के साथ-साथ घर का झाड़ू पोछा करके अपना काम करने वाली महिला थी। हंसमुख स्वभाव होने के कारण बेझिझक सभी से बात कर लिया करती थी। परंतु उसके यही हंसमुख स्वभाव सभी से बात कर लेने वाली आदत कहीं ना कहीं उसके जीवन में बहुत ही परेशानी का सबब बन गई थी।
उसकी इस आदत के कारण उसे यह याद ही नहीं रहता था कि वह तो आमतौर पर बात कर रही है परंतु कुछ लोग इसे गलत समझ सकते हैं क्योंकि इस पुरुष प्रधान देश में नारी को खुलकर अपनी इच्छाएं वह अपने विचार रखने में पुरुषों के मुकाबले कम ही आता जाता है। आए दिन किसी न किसी के नाम के साथ चंचल का नाम जोड़ा जाता और उसे बदनाम किया जाता। अब सोचने वाली बात यह है कि जो स्त्री घर का झाड़ू पोछा करके अपना काम कर रही स्त्री है और जिंदगी बस रोटी पानी में बीत रही है यदि वह कभी हंसकर पल दो पल किसी व्यक्ति से बात कर ले तो क्या यह उचित है कि उसके चरित्र पर कीचड़ उछाला जाए। क्योंकि नारी के प्रति दृष्टिकोण कुछ अलग ही रहता है ! जो स्त्री पर्दे में रहे किसी से बात ना करें उसे उत्तम स्त्री समझा जाता है।
आज के इस दौर में यदि महिला किसी पुरुष मित्र से हंसकर या दिल खोल कर बात कर लेती है ,तो यह समाज उसे नाना भांति के उप नामों से पुकारने लगता है। परंतु उसमें उस महिला की व्यक्तिगत रूप से कोई गलती नहीं होती क्योंकि वह इतनी जगह काम करती है तो उसके स्वभाव में यह परिवर्तन आना आम बात है ।सामाजिक स्तर पर यह सोचने लायक बात है और किसी भी महिला के चरित्र को लेकर कभी भी कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। आज के युग में नारी के प्रति नारी का ही दृष्टिकोण उचित नहीं है। इसे यदि सरल शब्दों में कहा जाए तो एक नारी ही नारी की सबसे बड़ी शत्रु है क्योंकि यदि पुरुष नारी के चरित्र की चर्चा ना भी करें परंतु एक स्त्री दूसरे स्त्री के चरित्र को बदनाम करने के लिए कोई मौका या अवसर नहीं छोड़ती।
प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
मध्य प्रदेश ग्वालियर
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लघुकथा