सोलहवें साल में उसे पता चला कि वो सांवली है
सोलहवें साल से पहले जितनी बार दर्पण के
सामने गई वो खुद को उतनी ही सुन्दर और
तीनों लोक की अप्सरा से कम न समझती थीं
सोलहवें साल तक वो ज्यादा सजीव और जीने
को लालयीत थी,
कई परीक्षाएं अव्वल नंबर में पास करने के बाद
वह जीवन की परीक्षा में फेल थी
क्योंकि वो सांवली थी
उसे अपने सांवलेपन का अहसास नकारात्मक
उत्तर पाने के बाद हुआ
और यही एहसास उसे मृत्यु के पास ले गया
यही सांवलापन जो उसकी नजर में सुन्दर था
चंचल था ,
वहीं समाज और माता पिता की दृष्टि में
शोभ और वितृष्णा का कारण था ।
अर्चना जोशी
भोपाल मध्यप्रदेश
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कविता