आत्मग्लानी

आत्मग्लानी 
   
आजादगंज नामक एक गाँव में दो बहनें रहती थी।बड़ी बहन का नाम अंकिता था और छोटी बहन का नाम विनीता था।दोनों बहनों को बचपन से ही गाना गानें का बहुत शौक था।वो दोनों बहुत सुरीला गाते थें।स्कुल में कभी प्रतियोगीता होता तो हमेशा उनकों ही पुरस्कार मिलता था।पर कहते हैं किसी की तरक्की से सामने वाले को जलन होती है।उसी तरह थे उनके चाचा-चाची।उनके दो बेटे थे।उनका मन पढ़ाई में लगता नहीं था पर पर वो दोनो भाई अमीर परिवार से थे और ये बहनें गरीब परिवार से।इन बहनों के माता-पिता जितना कमाते थे उतने में ही अपनी बेटियों का सपना पुरा करनें में लगे रहते थे।तो इसपर उनके चाचा अपने भाई से कहते कि बेटियों पर इतना खर्चा करने का क्या फायदा दिन इन्हे ससुराल ही जाना होगा।तब इसपर उनके भाई कहतें भले ही ये ससुराल जली जाएंगी लेकिन अगर इनके पास अपना हुनर होगा तो इन्हे किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।इसपर चाचा कहतें बेटे पर खर्चा करते हैं तो वो एक दिन कमाके देगा।फिर कुछ दिन बाद एक भाई की दोनों बेटियां बड़ी गायक बन गई, और दुसरी तरफ अपने पैसे का घमंड करने न चाचा के दोनों बेटे न पढ़ पाने के कारण छोटी सी नौकरी करने लगे।तब चाचा-चाची को आत्मग्लानी होने लगा कि अगर हमने अपने भाई की बेटियों का मजाक उड़ाने के बजाए अपने बेटों को काबु में रखा होता, तो उस समय जितने अमीर थे आज उससे ज्यादा अमीर होते ना कि इतने गरीब होते।

सीख-इसलिए कहते है कि दूसरों के काबिलियत का मजाक उड़ाने के बजाए अपने काबिलियत को निखारना अच्छा होता है।

उदय झा मुम्बई 
महाराष्ट्र 

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