कान्हा तेरे वियोग की पीड़ा राधा सह नहीं पाए
हृदय भरा अश्रुन से,पर नयनन से बह ना पाए
मन केवल दर्शन को आतुर, बस तेरा नाम पुकारें
आओ प्रियतम मेरे नैना तेरी राह निहारे
विरह की अग्नि में हम ऐसे जलती
जल बिन मीन जैसे है तड़पती
यमुना का तट सूना हो गया है
निधिवन तुम्हे कान्हा ढूंढ रहा है
मधुर तान बांसुरी की बड़ी याद आये
सुंदर कोमल छवि तेरी मन को तड़पाये
मन केवल दर्शन को आतुर, बस तेरा नाम पुकारें
आओ प्रियतम मेरे नैना तेरी राह निहारे
माना ह्रदय में मेरे तुम वास करते
बंद करूँ अखियां तो दर्शन देते
पर क्या तुम्हे भी कान्हा याद में हूँ आती
विरह की पीड़ा क्या तुम्हे भी सताती
तुम तो हो ठाकुर मेरे में तुम्हरी दासी
तेरे प्रेम की सदा रहूं मैं प्यासी
पर क्या भगवन भी भक्त के लिए है तड़पता
प्रेम के धागे से वह भी क्या बंधता
अनेकों प्रश्न ऐसे कान्हा मुझको सताए
होगा ह्रदय तृप्त जब तू सन्मुख आये
मन केवल दर्शन को आतुर, बस तेरा नाम पुकारें
आओ प्रियतम मेरे नैना तेरी राह निहारे
मौलिक एवं स्वरचित
नंदिनी लहेजा
रायपुर(छत्तीसगढ़)
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कविता