खिलो तो चाँदनी जैसी
हवा बनकर बहो रुत में
ये खुद से बेरुखी कैसी?
करो गुंजन भ्रमर बनकर
शमां को खुशनुमा कर दो
उड़ो आकाश में निर्भय
मधुर संगीत से भर दो!
सुबह की धूप है प्यारी
धरा पर खूब जंचती है
मेरी बगिया की तितली
झूमती फिरती मचलती है
ये सावन का महीना है
हमें मदहोश करती है
गगन में मेघ हैं छाये
बहुत खुश आज धरती है
मधुर एक गीत तो गाओ
तुम्हारा साथ दूँगा मैं
खुशी बिखरे चमन में
जिंदगी को थाम लूँगा मैं
[पद्ममुख पंडा, ग्राम महा पल्ली पोस्ट ऑफिस लोईग जिला रायगढ़ छ ग, वरिष्ठ नागरिक कवि लेखक एवम् विचारक
सेवा निवृत्त अधिकारी छत्तीस गढ़ राज्य ग्रामीण बैंक/
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कविता