"धर्म और मजहब से ऊपर होती है मिट्टी से मोहब्बत "

"धर्म और मजहब से ऊपर होती है मिट्टी से मोहब्बत " यह कहना है देश की प्रसिद्ध कवयित्री श्रीमती अलका सिन्हा का, जो स्वावलंबन शब्द सार द्वारा आयोजित  ऑनलाइन  गोष्ठी में मुख्य अतिथि के तौर  पर पधारी थी ।

दिनांक ४ सितंबर २०२१, ' स्वावलंबन ट्रस्ट’ के साहित्यिक प्रकोष्ठ, स्वावलंबन शब्द-सार  द्वारा ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर २४ रचनाकारों की विभिन्न विषयों पर लिखित रचनाओं ने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।  इस गोष्ठी का शुभारम्भ स्वावलंबन शब्द-सार की राष्ट्रीय संयोजिका श्रीमती परिणीता सिन्हा ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया। श्रीमती सुषमा भंडारी  ने माँ शारदे का वंदन-गान किया | 
 मुख्य अतिथि के रूप में श्रीमती अलका सिन्हा और कार्यक्रम अध्यक्ष श्री सुबोध कुमार शर्मा शेरकोटी रहे। स्वावलंबन ट्रस्ट की अध्यक्ष श्रीमती मेघना श्रीवास्तव ने स्वावलंबन ट्रस्ट की विभिन्न गतिविधियों के बारे में बताया कि कैसे वे कोरोना काल की कठिन परिस्थितियों में  समाज की सेवा में संलग्न है ।
मुख्य अतिथि श्रीमती अलका सिन्हा ने कहा कि स्वावलंबन शब्द सार के सदस्य संस्था के नाम को  सार्थक करते प्रतीत हो रहे है । उन्होने कोरोना काल की परिस्थितियो को इंगित करते हुए कहा कि जब हम आपस में मिल नहीं सकते है तो शब्द सारतत्त्व की भाँति है अत: जब हम शारीरिक रूप से किसी के लिए उपबब्ध नहीं होते तो हमारे शब्द ही किसी को संबल दे सकते है | उनकी कविता की पंक्ति ”देश की मिट्टी में गुमनाम मिल जाना भी होता है पाक मोहब्बत का निशान” श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर गयी |    
श्री सुबोध कुमार शर्मा  शेरकोटी का कहना था कि शिक्षा ,संस्कार या न्याय व्यवस्था, में  कुछ नया करना होगा
आधुनिकता के अन्धकार में ,ये सब शीत के  चंद   हो  गये हैं ।         उनकी पंक्तियाँ 
“अबोध मिटाओ जीवन का , सुबोध को अब अपनाना  होगा 
जग को यह दर्शा दो अब तो, जग में नव अनुबंध   हो गये।“ सुन कर श्रोता वाह –वाह कर उठे ।
स्वावलंबन शब्द सार की राष्ट्रीय संयोजिका परिणीता सिन्हा की कविता "माहवारी " की पंक्ति " कैसा है ये विधान ? जिसमें इन दिनों स्त्री शूद्र समान । वो शूद्र जिनके बिना ना मिले मुक्ति, और जिसमें स्वयं विराजमान है माँ शक्ति " श्रोताओं को द्रवित  कर गयी ।
इस अवसर  पर हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक डॉ. मुक्ता, वरिष्ठ कवयित्री ,सुरेखा शर्मा ,दुर्गा सिन्हा  शकुंतला मित्तल, सुषमा भंडारी, लता अग्रवाल आदि की उपस्थिति रही एवं उन्होने सुंदर काव्य पाठ किया | |प्रतिभागियों में मोना सहाय, सीमा सिंह, निवेदिता सिन्हा, श्रुतकृति अग्रवाल, चंचल ढींगरा, अभिलाषा विनय, शालिनी तनेजा, रचना निर्मल , चंचल हरेन्द्र वशिष्ट, अंशिका श्रीवास्तव, ऋचा सिन्हा ,साक्षी सिंह ,सरिता गुप्ता,लता सिन्हा आदि की उपस्थिति रही । कार्यक्रम का सुचारू संचालन राष्ट्रीय संयोजिका परिणीता सिन्हा और राष्ट्रीय सह-संयोजिका भावना सक्सैना ने किया। 
गोष्ठी के अंत में राष्ट्रीय सह-संयोजिका भावना सक्सैना  ने धन्यवाद ज्ञापित किया।        अध्यक्षीय संबोधन में श्री सुबोध कुमार शर्मा शेरकोटी ने सभी के काव्य-पाठ की सराहना की और हृदयतल से आभार प्रकट करते हुए स्वावलंबन शब्दसार परिवार के उज्जवल भविष्य की कामना की ।
काव्यपाठ की चंद पंक्तियां :-
१“ हिंद के निवासी हो तो हिंदी बोलो रे
प्रेम की ये भाषा है हिंदी बोलो रे।.”.....भावना सक्सैना
२“ घिर रहे हैं, मेघ काले सघन, घिर रहे हैं।
छू रहे हैं, अनछुई कोंपलें, छू रहे हैं।
बोलते हैं, जो हवाएँ कहें, मुस्कुरा के।“ अभिलाषा विनय
३ ”घर में बेटा चैन से सोता है 
पर  वो सरहद पर बैठा रातों को भी जागता है। “निवेदिता सिन्हा
४ ” जीवन का सार है संतुलन 
 प्रकृति का आधार है सन्तुलन|” सीमा सिंह 
५”वो रक्तिमा में लिपटी हेय मानी जाए, 
मंदिर के दरवाजे भी उसके लिए बंद हो जाए ।“ परिणीता सिन्हा
६  “दौर- ए-मुलाकात जालिम है बहुत 
 दुआ सलाम  जानने मे भी डर लगता है।“चंचल ढींगरा
७ “अरमान अपने जीने का किया कीजिए
ख़ुद के लिए भी थोड़ा-थोड़ा जिया कीजिए।” डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार’
८  "नील गगन में उड़ता पंछी कर रहा गंभीर मनन
कल तक हंसती थी जो अवनी, आज कर रही क्यूं क्रंदन ?" सुरेखा शर्मा
९” कलम की धार हो ऐसी ,शब्दों की मार हो ऐसी
भेद डाले झूठ को जो ,सच की तलवार हो ऐसी।“ चंचल हरेंद्र वशिष्ट
१०”हो जाए तू जहां खड़ा, प्रभा वहीं बिखेरता|
मिटे निशा की बानगी,हो लालिमा लिए धरा” लता सिन्हा ज्योतिर्मय
११” बेटी जब भी तू  धरा पर आयी,तूने ही सारी सृष्टि रचायी।
तू न होती, जग में उजाला न होता, तूने ही दो घरों की परवरिशें की है। “अंशिका श्रीवास्तव
१२ “अब वह समझ चुकी थी कि बच्चों की सही शिक्षा 
और आचरण का दायित्व  माता -पिता दोनों का होता है। “डॉक्टर मोना सहाय
१३” अधखुली उन्मीलित ऑंखें ,झिलमिल सपनों के द्वार पर 
ठिठकी,सहमी,विहँसी,चंचल,नवजीवन की मधुर पुकार पर” , श्रुतकृति अग्रवाल
१४” काले बादल देख नभ,जगती सावन आस
बादल लगते मगर से,ओढ़े काली खाल। “शकुंतला मित्तल
१५” "आओ बैठो पास ,कुछ नया करते हैं, बहुत पढ़ लिया,कागज का लेखा
हम पढ़ें मौन एक दूजे का और उसे कलमबध्द करते हैं,चलो कुछ नया करते हैं।"-डॉ. लता अग्रवाल
१६”आँखों से सपनों का बंधन होता है। 
साँसों से अपनों का बंधन होता है।“, सुषमा भंडारी
१७” बेटियाँ घर  की  शान  बेटियां बेटियां होती है
दिल का मान देवियाँ  बेटियाँ होती है |” ऋचा सिन्हा
१८”  चुटकी भर सिंदूर की बात है निराली
 चुटकी भर सिंदूर से आती गालों पर लाली ..” सरिता गुप्ता
१९” कहते हैं ज्ञान का अनमोल ख़ज़ाना है गुरु
इसलिए ईश ने धरती प उतारा है गुरु |“ रचना निर्मल
२०” जानकारी होती नहीं मात्रा में 
जब होता है कोई यात्रा में” साक्षी सिंह
२१” सबसे बड़ा "समय" है शिक्षक, जो हर पल में सीख नई देता 
 जो मर्म समय का समझ गए वो फिर समाज शिक्षित करते|” शालिनी वत्स तनेजा
२२” उठो! झूठे अहं व ज़िद्द की गांठें खोलो ,एक-दूसरे को मन से स्वीकार करो
और हर पल को भरपूर आनंद से जी लो” डा० मुक्ता

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