मृगनयनी सी मन भावन हो तुम.....
चित् तुम्हारा चंचल चंद्रमुखी सा
मन जैसे कोई उपवन है
जैसे हवा यह शीतल है
सुंदरता की हो मधुशाला
शांत तुम्हारी सीरत है,
हो पवित्र अग्नि जैसी तुम
मंदिर में जैसे कोई मूरत हो।
मृगनयनी सी मनभावन हो तुम.......
जब से आई हो जीवन मैं
साकार कल्पना हुई है मेरी,
पुष्प रूपी खिला है ये मन
जैसे नाचे मयूरी उपवन में
मृगनयनी सी मनभावन हो तुम.........
प्रतिमा दुबे ( स्वतंत्र लेखिका )
ग्वालियर ( मध्य प्रदेश)
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कविता