तेरा दीदार बाकी है
लम्बी है ये जिंदगी बेहद ,
इस उम्र का सफर बाकी है !
काफिलों से गुजर रहें बस
एक तेरा दीदार बाकी है ।।
तेरे याद की सहर में रोज
मुस्कुराता है ये दिन मेरा,
तेरी आखों ने छेड़ी जो बात
बस तेरे अल्फाज़ बाकी है ।।
मृगतृष्णा होती सी उठ रही
तुझे जी भर देख लूं कभी,
छूट जाए ना कभी ये साथ
प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
मध्य प्रदेश ग्वालियर
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कविता