हो रहा है, आहिस्ता आहिस्ता , लबरेज़ है,
फितूर बद मिज़ाजी का, हैरत अंगेज़ है!
जिसे सपने में भी, नेकी पर, ऐतबार नहीं,
लबों पर, वही बार बार, सनसनीखेज है!
खुद ही गरीबी की, रहे दास्तां सुनाते वो,
आज उसी के, शूट बूट वाला, इमेज़ है!
मां ने पाला पोसा, दूसरे के घर, बर्तन मांज,
आज बेटे को, गरीबों की मदद से, परहेज़ है!
देश का किसान, रो रहा आज, खून के आंसू,
विकास का पहिया, घूम रहा, बहुत तेज़ है!
पद्म मुख पंडा
ग्राम महा पल्ली
जिला रायगढ़ छ ग
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कविता