मैं मीर की ग़ज़ल हूँ


मैं मीर की ग़ज़ल हूं
जिन्दगी में देखो मैं कैसे कैसे मुकाम बनाने को आया हूं ।
कहीं सपनों की गठरी तो कहीं लाश अरमानों की लाया हूं ।।

लोग पूछते रहे सरे राह मुझसे तुम कौन से शहर से आये हो ।
मैं बता न सका पता अपना मैं अजनबी बनकर आया हूं ।।

राजनीति के हालात देखकर बसंत भी शरमाने लगा ।
लगता है आज जंगल में कहीं चुनाव होने वाला है ।।

मुरझाए हुए फूल सर्द हालात देखकर खिलने से डर रहे ।
बादलों की कड़कती बिजली देख लगता है वज्रपात होने वाला है ।।

उसकी नजर देख कर मुझे कुछ अलग नजर आने लगा ।
बसंती चोला पहनकर धरती का रंग  पीला नजर आने लगा ।।

आंखों की सुर्खियां कह रहीं हैं हालात कुछ अच्छे नहीं ।
आज अमीर भी देखो गरीबों के पैर छूने उनके घर जा रहे हैं ।।

गुंडे माफिया और बद मिजाज शराफत का चोला पहनने लगे।
चुनाव नजदीक आते ही गिरगिट की तरह रंग बदल जाने लगे ।।

ऋतुओं का राजा बसंत भी इन नेताओं के देख शरमाने लगा ।
लगता है आज सर्द मौसम में भी गर्मी का अहसास आने लगा ।।

ज़हर की खेती करके बन गये जो धन दौलत के कुबेर भंडारी ।
जांच पड़ताल शुरू हुई तो लगता है दिन में तारे नज़र आने लगे ।।

देखो जरा गौर से मौसम रोज रोज बदलता चला जा रहा है ।
लगता है कोरोनावायरस का नया वैरिएंट सामने आ रहा है ।।

जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम
चन्द्र शेखर शर्मा मार्कंडेय जनपद अमरोहा उत्तर प्रदेश 

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