सुरों की मल्लिका, साक्षात सरस्वती,
मधुर गुंजन से, भर उठी सारी धरती,
मानव, पशु पक्षी, वृक्ष लता, सरिता,
पर्वत, सागर, झरना, सर्वत्र है गूंजती,
लता दीदी का गायन और सधा   हुआ सुर,
करते रहे हैं श्रवण, नर किन्नर देव  असुर!
उनकी आवाज़ की खनक, सदा बहार है,
कानों में गूंजती हैं जैसे वीणा के तार हैं।
अनेक भाषाओं में दीदी ने गाने गाए हैं
हर किसी के दिल में, आस जगाए हैं।
शास्त्रीय संगीत, आधुनिक युग के गीत,
दक्षता में कोई कसर नहीं होती प्रतीत ।
ऐसी सुर साधिका को , हम नमन कर रहे,
देश दुनिया में, लता मंगेशकर अमर रहे!
स्वरचित  एवम् मौलिक
पद्म मुख पंडा ग्राम महा पल्ली जिला रायगढ़ छत्तीस गढ़
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कविता
