“स्वर कोकिला सुर साम्राज्ञी भारत रत्न लता मंगेशकर जी को नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि”
सरस्वती माता के हाथ में अगर वीणा है,
लता दीदी उस वीणा की आवाज हो तुम।
तेरे बिन गीत संगीत अधूरा और सूना है,
सुर और लय कैसे मिलते, राज हो तुम।
सरस्वती माता के हाथ………….
पुरस्कारों से तुम सम्मानित नहीं हुई हो,
तुमसे पुरस्कार सम्मानित, ताज हो तुम।
भारत रत्न मिला खुश हुई भारत माता,
मां वीणा वादिनी के हर अंदाज हो तुम।
सरस्वती माता के हाथ………..
तेरी आवाज ही तेरी पहचान है जग में,
गायकी की हर विधा का नाज हो तुम।
तुम मन, चमन, आंगन में गूंज रही हो
न अतीत न इतिहास हो, आज हो तुम।
सरस्वती माता के हाथ……….
तेरी मधुर आवाज से देवी देवता जागते,
भजन व भक्ति गीतों की लाज हो तुम।
जल, थल और नभ में तुम हो लता जी,
गीत संगीत सवार जहां, जहाज हो तुम।
सरस्वती माता के हाथ………..
तुमको चाहकर भी नहीं भूला सकता कोई,
आवाज सजती जिससे, वो साज हो तुम।
जब तक सागर में पानी है, जिंदगानी है,
हंसी खुशी संग जीने का रिवाज हो तुम।
सरस्वती माता के हाथ………….
तुम जहां भी जाओगी, संगीत साथ होगा,
चाहनेवालों के मुंह के अल्फाज हो तुम।
तेरे दिवंगत होने की खबर ने रुला दिया,
जो बादलों में चमके, आफताब हो तुम।
सरस्वती माता के हाथ………
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)
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कविता