जिंदगी भर सितम हमने झेले




जिंदगी   भर   सितम  हमने  झेले  तेरे 
फिर  भी  हम  ही  रहे  बस अकेले तेरे

कोई भी इक जहां भर में दिखला दे तू
दिल  के  बदले  में  जो  दर्द  लेले  तेरे

उम्र सारी  ही  हम  तो  जिये  हैं  सदा
लाखों ही ज़ख़्म  दिल  में  सकेले  तेरे

वाखुशी ले लिए अपने सर  माथे  पर
सारे    अपराध    सारे    झमेले    तेरे

तुझको इल्जाम से दूर रखने  को  ही
खेल  बिन  चाहे  भी  हमने खेले  तेरे

मुझको दे बख़्श तू मेरी  तन्हाई  बस
हों   मुबारक   तुझे   राज  मेले   तेरे

ग़ज़लराज
राज शुक्ल नम्र 

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