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(हम तो मुसाफिर हैं) 

हम तो मुसाफिर हैं  तेरे शहर  के कल चले जाएंगे
बस इन होठों पर कुछ  गिले -  शिकवे  रह जाएंगे

छोड़  आना  अपनी  निगाहों से  हमें  चौराहे  तक
तुम्हारी  नजरों  से ओझल  हो  जाऊं मैं जहां तक

 मेरे मुड़ के देखने से आंखों के अश्क जाग जाएंगे 
हम  तो मुसाफिर  है  तेरे शहर के कल चले जाएंगे

कह रहे हैं  खुदा से जाकर यही बात हम बार-बार
लंबी हो यह रात ना गुजरे  ना  आए कल का वार

एक - एक  पल कीमती  है आज तेरे इस शहर में
 मर  ना जाए हम  कहीं  सोचकर  इसी  कहर  में

लगता  है  जाने  से  पहले ही  हम जान से जाएंगे 
हम तो मुसाफिर  है  तेरे शहर के कल चले जाएंगे,

महेश राठौर सोनू ✍️
गाँव राजपुर गढ़ी 
जिला मुजफ्फरनगर
 उत्तर प्रदेश

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