आलेख : विजय पंडा छत्तीसगढ़
आज टेलिविजन पर जब सुबह समाचार देखते वक्त नन्हा बच्चा "अंश "तोतली भाषा मे बन्दूक - - बन्दूक- -बोलने लगा तब समाचार की एवं उस नन्हे के खिलौने वाले प्लास्टिक के बंदूक की ओर देखा तब मुझे अन्य दिन की तरह से सहज भाव नही लगा अपितु ;मेरे मन मष्तिष्क में कई सवाल उभरे एवं एक नई दिशा की ओर चिंतन करने पर मष्तिष्क में दवाब बनने लगा।समाचार में रूस एवं यूक्रेन की युद्ध विभीषिका चल रही थी।कितना भयावह मंजर ।कितने परेशान एवं कष्ट पूर्ण हो रहा होगा इनका जीवनचर्या एवं अन्य गतिविधियाँ।।इसको देख सोचने को मजबूर हुआ कि माँ भारती के लाल ही हैं हम जो आंतरिक- बाह्य ताकत रखते हुए सँस्कृति से लेकर विश्व पटल पर अन्य शक्तियों में एकता बनाए हुए कर्म एवं शाँति पर विश्वास करते हैं एवं उस रास्ते पर स्थिरतापूर्वक चल भी रहे हैं।क्या हो रहा है विश्व पटल मे आज ? आने वाली नवांकुर पीढ़ी सह युवाओं का एक विशाल वर्ग इस युद्ध से क्या सन्देश प्राप्त करेंगे ? यह चिंतन का विषय है आज। जो भी है कोरोना जैसे राष्ट्रीय आपदा के समय हम सब ने देखा भारतवासियों की एकता - समन्यवयता - सहिष्णुता- राष्ट्रीयता एवं अन्य मानवीय मूल्य।जिसकी इन क्षेत्रों में किए गए कार्यों की जितनी वैश्विक स्तर पर प्रंशसा हो यह कम ही होगा।हो भी क्यों नही? यहाँ कर्ण - दधीचि जैसे मनीषियों ने जन्म लिया है तो खुदीराम बोस, भगतसिंह जैसे उत्साही माँ भारती के लाल ने जन्म लिया है।अभिमान व स्वाभिमान की सिख देने वाले राणा ने जन्म लिया है तो अहंकारी रावण को जमीं पर लिटाने वाले आराध्य राम ने आदर्शता का संदेश भी दिया है और बताया कि मदान्ध - दुराचारी को प्रतिनधित्व करने वाले दुष्ट का भारतीय समाज मे क्या हश्र होता है।कबीर , तुलसीदास जैसे प्रेम एकता सत्यता की सन्देश वर्षों तक देने वाले एवं सभी धर्मों से ऊपर साधारण वेशभूषा में असाधारण व्यक्तित्व अब्दुल कलाम जैसे महामानवों ने भी जन्म लिया जो अपने विचारों एवं कार्यों से लोगों के प्रेरणा स्रोत बने रहे।भारत त्याग वीरता सँस्कृति से युक्त वैभवशाली समृद्ध देश है ,जो शान्ति पर विश्वास करता है एवं आत्मविश्वास से भरा आत्मनिर्भर स्वाभिमान से चलने वाला देश है।आज के समय मे जिस प्रकार दोनों देशों की युद्ध की दुष्परिणाम व परिदृश्य नजर आ रहे हैं उसके दूरगामी परिणाम जनमानस के लिए उचित नही होंगे।प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष रूप से मानव जगत प्रभावित होगा ।बहरहाल जो भी हो विश्व में एकता कायम रहे ; बन्दूक बारूद से दूर रहे मेरा विश्व । अब चिंतन का विषय है की ऐसे युद्ध पर विराम नही हुआ तो कितने विकास विरुद्ध दुष्परिणाम होंगे।उस देश के युवाओं का भविष्य क्या होगा जो देश के लिए बन्दूक उठा लिए है? ठीक है इतिहास के घटना चक्र में ऐसे विरले समय आते हैं जिसमे मातृभूमि के लिए साहसिक हाथ एवं कदम बढ़ाने का सुअवसर मिलता है। राष्ट्र हैं तो हम हैं।मातृभूमि की आँचल शान से लहराए यही हर देश के नागरिकों की ध्येय भी होती है।किन्तु आपसी राष्ट्रीय द्वंद से जन जंगल जमीन जनमानस के साथ आर्थिक संसाधनों एवं अन्य विषयों पर अस्थिरता भी उतपन्न होती है ; जो अन्य राष्ट्रों को भी प्रभावित करती है।युद्ध चाहे आंतरिक हो या बाह्य शक्ति साथ विकास के इस युग मे स्वीकार्य नही है।इस कारण "वसुधैव कुटुम्बकम" की भावना के साथ विश्व शाँति के लिए बरबस की मेरे हाथ प्रार्थना करने के लिए मेरे दोनों हाथ उठा गए।
- 0-
मो0 - 9893230736
Tags:
आलेख