दीवारों से जाकर कह दो , कानाफूसी कम कर दे।
थोड़ा देश की चिंता कर ले, अब जासूसी कम कर दे।।
कुछ लोगों के पेट भरेंगे, अगर खजाना खोल दिए।
सेठों से जाकर कह दो कि, अब कंजूसी कम कर दें।।
अकर्मण्य लोगों को अपने , पास नहीं आने देना।
कह दो उससे काम करे कुछ, चापलूसी कम कर दे।।
झूठ बोल कर वह माहौल,बिगाड़ रहा है,माहिर है।
छोड़ मजहबी चिंताओं को,वतनफरोशी कम कर दे।।
तुम क्या हो ये लोग जानते , मिट्ठू बनना छोड़ो जी।
कुछ दिन ही फरेब टिकता है,गर्मजोशी कम कर दे।।
नौजवान जिस दिन उठ जाएगा, सिंहासन डोलेगा।
उससे कह दो झुकना सीखे,अब मदहोशी कम कर दे।।
धनपतियों से वाह-वाह ले-लेकर , खुश हो जाता है।
लोकनीति बात करे मत, अब मुफलिसी कम कर दे।।
सीने की चौड़ाई दिखलाने से , काम नहीं चलता।
उससे कह दो बहुत जोर है, एक पड़ोसी कम कर दे।।..."अनंग"
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कविता