सारसी /कबीर छंद
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वीणा पुस्तक कर में माता ,है उज्जवल परिधान।
हंस सवारी गले में माला ,मधुर - मधुर मुस्कान।
महिमा अपरम्पार जगत में , करते सभी बखान।
नाऊँ शीश चरण में माता , देहु अभय वरदान।
सदा प्रगति पथ आगे बढ़ना,ले मन उज्वल आश।
पांव न पीछे कभी हटाना , होना नहीं निराश।
अटल अभय हो मन में रखना,श्रध्दा प्रेम विश्वास।
मानव होगा तभी तुम्हारा, चौतरफा सु - विकास।
नर जीवन अनमोल अनूठा, नित अपने को तोल।
कटु निन्दा हैं दोष वचन के,मधुर वचन नित बोल।
सत्य धर्म सुकर्म से मानव, मत हो डांवा डोल।
मन कर्म वचन एक नेककर,जन मन मधुरस घोल।
त्याग सदा आलस कायरता , कर थोड़ा आराम।
नेक नियत व नजर शुद्ध रख, पावन करता काम।
परहित परमार्थ में रहता ,निशदिन शुबहो शाम।
मानव वहीं महान जगत में, आवत सबके काम।
शरम लगे जिसको करने में, बरे जगत में आग।
भागो उससे दूर सर्वदा , जाग सके तो जाग।
होय गमगीन पर गम से सदा,हीन भावना त्याग।
सखा बनाता दुश्मन को भी , ऐसा है अनुराग।
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बाबूराम सिंह कवि, गोपालगंज, बिहार
मोबाइल नम्बर-9572105032
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कविता