श्रद्धा से मस्तक झुक जाए,बिना स्वार्थ के सिद्धि देता।
शिक्षक ही पीढ़ी -दर - पीढ़ी , ज्ञान दान समृद्धि देता।।
बिना स्वार्थ सुख-दुख की चिंता,सर्वसमाज हितों की चिंता।
स्नेहाशीष के अभिसिंचन से , वही चतुर्दिक वृद्धि देता।।
छाया बनकर साथ रह रहे , दिग्भ्रमित सन्मार्ग बताएं।
गढ़ कर मेरे जीवन को वह , चारों और प्रसिद्धि देता।।
विकट परिस्थितियों में केवल ,ज्ञान साथ ही देता है।
कठिन साधना के तपबल से ,सबको बुद्धि-शुद्धि देता।।
राम-रहीम खुदा के बंदे , फिर भी शिक्षक बिना अधूरे।
नव पथ पर चलने वालों को , वह हरदम विवृद्धि देता।।
कौशल और कला से सजकर,हम समाज के लायक होते।
वह प्रत्यक्ष - परोक्ष रूप से , हमें सदा ही रिद्धि देता।।
नेता-वक्ता-अधिकारी को,ख्याति मिल रही चारों ओर।
आज हाशिए पर है शिक्षक,जो सबको अभिवृद्धि देता।।..."अनंग"
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कविता