आज हाशिए पर है शिक्षक

आज हाशिए पर है शिक्षक 
श्रद्धा से मस्तक झुक जाए,बिना स्वार्थ के सिद्धि देता। 
शिक्षक ही  पीढ़ी -दर - पीढ़ी , ज्ञान दान समृद्धि देता।।
बिना स्वार्थ सुख-दुख की चिंता,सर्वसमाज हितों की चिंता। 
स्नेहाशीष के अभिसिंचन से , वही चतुर्दिक वृद्धि देता।। 
छाया  बनकर  साथ रह रहे , दिग्भ्रमित सन्मार्ग बताएं।
गढ़ कर  मेरे  जीवन  को वह , चारों और प्रसिद्धि देता।।
विकट   परिस्थितियों  में  केवल ,ज्ञान साथ ही देता है।
कठिन साधना के तपबल से ,सबको बुद्धि-शुद्धि देता।।
राम-रहीम खुदा के बंदे , फिर भी शिक्षक बिना अधूरे। 
नव पथ पर चलने वालों को , वह हरदम विवृद्धि देता।।
कौशल और कला से सजकर,हम समाज के लायक होते।
वह प्रत्यक्ष - परोक्ष  रूप से ,  हमें सदा  ही रिद्धि देता।। 
नेता-वक्ता-अधिकारी को,ख्याति मिल  रही चारों ओर।
आज हाशिए पर है शिक्षक,जो सबको अभिवृद्धि देता।।..."अनंग"

Please Select Embedded Mode To Show The Comment System.*

Previous Post Next Post

Contact Form