"चाहतों की हवा:" पुस्तक इंदौर की सुपरिचित लेखिका व कवयित्री सुशी सक्सेना का पांचवां काव्य-संग्रह है



प्रकाशन - अनुराग्यम नई दिल्ली
किताब का नाम - "चाहतों की हवा "
लेखिका -सुशी सक्सेना, इंदौर (मप्र)

    "चाहतों की हवा "पुस्तक इंदौर की सुपरिचित लेखिका व कवयित्री सुशी सक्सेना का पांचवां काव्य-संग्रह है।*अनुराग्यम नई दिल्ली प्रकाशन द्वारा इसे प्रकाशित किया है और *अनुराग्यम नई दिल्ली के संस्थापक श्री सचिन चतुर्वेदी जी हैं।* यह सुरुचिपूर्ण संपादन कला का कमाल है कि पाठकों को पहली कविता से अंतिम कविता तक पहुँचा दिया गया है।116 पृष्ठों की इस पुस्तक का कवर पेज शानदार है और उससे भी अधिक आकर्षक है अंदर की 100 कविताएँ, जो पाठकों के अंतर्मन पर दस्तक दे रही है।इन कविताओं में डूबने से पहले हम कवियत्री के बारे में कुछ जान लें, क्योंकि, सुशी सक्सेना का जन्म भी बांदा,उप्र की उस पवित्र भूमि पर हुआ है जहाँ हिंदी के महान कवि केदारनाथ अग्रवाल जन्मे थे। इसी यशस्विनी के प्रेम की एक धारा सुशी सक्सेना के रूप में हिंदी कविता में उतर गई है।
      चाहतों के इस सफर में सच्चा हमसफ़र सिर्फ वह ही नहीं होता जो साथ में चलता है बल्कि वह भी होता है जो हमें सही रास्ता दिखाता है। अब वह साथ में रहे या न रहे इससे क्या फर्क पड़ता है।
    कभी कभी कोई इतनी दूर चला जाता है कि फिर दुबारा नहीं मिलता, लेकिन एक अहसास बनकर और हवा में शामिल होकर हमारे आसपास होने के संकेत दे जाता है। और हमें उसके इसी अहसास से एक नया रास्ता दिखाई देता है। खासतौर पर जबकि हम अंधेरों में घिरे हों, और वह एक रोशनी बनकर चमकता है। उसके हवा के रूप में आसपास होने के इस अहसास को " चाहतों की हवा " का नाम दिया जा सकता है।
    सुशी सक्सेना जी की चाहतों की हवा में जिसका अहसास होता है वह उनकी मां है। जिसे स्वर्ग सिधारे एक अरसा हो गया मगर अब भी वह उनके ख्वाबों में आती है और उन्हें उसके आसपास होने का अहसास होता है। उनके दिल में जो हसरतें थी वो चिंगारी बन कर भड़की हैं और उसे जिसने भड़काया है वह " चाहतों की हवा " उनकी मां है। और ज़िंदगी के इस तन्हा सफर में " चाहतों की हवा " बन कर वह हमेशा उनके साथ है।

चाहतों की हवा आई, और उड़ा कर ले गई, साहिब।
मेरे मन की पतंग को, उल्फत के कांटों में फंसा दिया।
गुलाबों की खुशबू, दुनिया की नजर चुरा कर ले गई,
यूं पकड़ कर दामन मेरा, कांटों ने प्यार जता दिया।

   प्रसिद्धि के बिना जीवन का कोई मोल नहीं है...इसी चाह में कवयित्री बेहिसाब बेसबब मोहब्बत को जीती चली गई है।जब हम इस संकलन की कविताओं को पढ़ेंगे तो रोम-रोम प्रफुल्लित रोमांचित भी होगा और हम दुख के गहरे सागर में भी डूबते चले जाएंगे।
जाने कितने-कितने रंगों में ढालकर प्रेम हम तक पहुँचाती हुई कवयित्री सुशी सक्सेना अपने इस मोहब्बत के सफर में कामयाब होती है और यह अनूठा संग्रह हम तक पहुँचता है। 
अंत तक आते आते यह इत्मीनान तो होता है कि सुशी सक्सेना संभावनाओं से भरी कवयित्री है।

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