शहर का लाडला था वो

अभिषेक पंडा को श्रद्धांजलि अर्पित।

"शहर का लाडला था वो"
         : कविता शर्मा

लथपथ लहू में बेजान सा वो मेरे शहर का लाडला पड़ा था,
अरे! कोई देखो कोई तो रोको!
अभी तो जाने का वक़्त ही नहीं था।

कैसी पीड़ा भुगत गया 
हे! ईश्वर तेरा भी तो वो भक्त बड़ा था।
ऐसे कैसे दी यह वेदना
जब तेरी भक्ति का सुरक्षा कवच था।

तेरे शीश को संवारता था
तुझे बड़ा दुलारता था।
क्यों नहीं बचाया उसे
क्य बचाना श्याम तेरा फर्ज़ नहीं था?

पता है तू मौन रहेगा 
सवाल हर मन में उठेगा,
क्यों मौन किया तेरे बावरें को
तेरी भक्ति का फल ये तो नहीं था।

बड़ा मौन है! उसके जाने से
जैसे सैकड़ों दिये बुझे हों साथ,
उस दिन हर दिल रोया।
तेरी तरह ही निराली थी
उस लाडले की बात।

निराली थी उस लाडले की बात।
मेरे शहर का लाडला था वो।।

अभिषेक भैया प्रत्येक शहरवासी की ओर से भावभीनी श्रद्धांजली 

      : कविता शर्मा घरघोड़ा

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