कुंभ स्नान
देखो !
भारतीय संस्कृति में महाकुंभ
वर्षों बाद आया है।
अमृत कलश का जल पाने
पवित्र धरा की ओर
सत्य सनातनी दौड़ा आया है।
एकता सद्भावना परोपकार
की भावना
वृहद विहंगम दृश्य
देखो तो
कैसे मन में समाया है।
गाँव नगर हर शहर दौड़ पड़े हैं
अमृत कुंभ का जल पाने
माँ गंगे के चरणों में
सिर नवाने
उच्च संस्कृति का मान बढ़ाने
साधु संतों की समीप्यता पाने
उनके हस्तों की आशीष पाने
तृप्त कंठ से कुंभ रस को पीने
भारतीय एकता मजबूत बनाने
देखो !
आज हर सनातनी माँ की
आँचल में समाने
दौड़ा दौड़ा आया है।
बूंद बूंद रस की लालसा
कुंभ स्नान की अभिलाषा
हर जन में वर्षों से समाया था
तभी तो भारत माता का लाल
कुंभ नहाने आया था।
✒️विजय पंडा
घरघोड़ा जिला रायगढ़
छत्तीसगढ़
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कविता